कुछ ओर देखने को जी करता नहीं है,
नज़र आती है सिर्फ सूरत तेरी,
अब आईने से दिल डरता नहीं है,
तेरी आँखों की झील है इतनी गहेरी,
कोई डूब जाए तो उभरता नहीं है,
झुल्फों को बिखर जाने दो अब तो,
के घटाओं से सावन बरसता नहीं है,
तेरे लबों ने सारी रंगत चुरा ली,
कोई गुल बागो में खिलाता नहीं है,
रोशनी से ही तेरी झिलमिलाता है आलम,
परवाना शमा पर अब मरता नहीं है,
तेरी महक से हो कर के पागल,
तूफ़ान कहीं ओर ठहेरता नहीं है,..........
दिदार से तेरे जी भरता नहीं है,
कुछ ओर देखने को जी करता नहीं है,
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