Wednesday, 15 December 2010

चले आते है!


तेरे चहेरे से उठता है जो नूर इतना,
शमा को छोडके परवाने चले आते है!

तेरी खुश्बू से महेकता है मौसम ऐसे,
कँही भी हो दीवाने चले आते है!

समझ कर चाँद तुझे अमावस की रातो में,
तेरे दीदार को सितारे चले आते है!

कदम चूमने को तेरे साहिल की रेत पर,
दरियाँ कई किनारे चले आते है!

गुजरे जब तु मैदान-ए-सहेरा से,
मस्त बहारो के नज़ारे चले आते है!

महेफिल में कँही तुमसे मुलाकात भी हो,
हम मौसकी के बहाने चले आते है!

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