Sunday, 19 December 2010

"हाल-ए-दिल"

 
बंदिशे बहोत सी है जुबाँ पर, बोलु कैसे?
दिल में छूपा है जो राज़, खोलू कैसे?
बोल दु तो डर है रूठ जाए ना कोई,
अब तक है जो साथ छुट जाए ना कहीं,
कहें  बिना भी तो रहा नहीं जाता है,
दर्द दिल का चहेरे पर नज़र आता है,

आग लगी और उठा जो जरा धुँवा,
किसीने पूछा अरे तुझे क्या हुआ, 
कहे तो दीया "कुछ भी नहीं,"
पर मेरे दिल पर मुझे यकीं नहीं,
बार बार फिर यहीं सवाल आता है,
अबे साले, तु क्यों इतना घबराता है?

जवाब: 
"कल करे सो आज कर, आज करे सो अब,
किस्मत मेरी ख़राब है फिर ना कहेना तब."



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