खता है मेरी मै तुझे चाहता हूँ!
सहेरा की रेत में है मेरा ठिकाना,
बाग़ - बहार - घटा चाहता हूँ!
नहीं ओरों सी मेरी किस्मत तो क्या है,
आजमाना एक दाव चाहता हूँ!
मुमकिन नहीं तुझसे मिलना लेकिन,
तेरे दिल में थोड़ी सी जगह चाहता हूँ!
जमाने में मज़ाक बना कर भी अपना,
बस तेरे लबो पर हँसी चाहता हूँ!
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