Sunday, 21 June 2020














आज फिर एक मौत की खबर सुनी,
आज फिर एक बार आसमान जम के रो  दिया,

काली शाही लपेटे रात फिर सो गयी,
टुटा तारा कोई, न जाने कही फिर खो गया!

Thursday, 14 November 2013

रात पुरानी सी क्यों लगती है।



सब कुछ पा कर भी कुछ कमी सी क्यों लगती है?  
सहेर होते ही ये रात पुरानी सी क्यों लगती है? 

दिन गुजर जाते है जद्दो-जहेत में, शाम आते ही तन्हाई सी क्यों लगती है? 
सुखचैन पाने कोशिश में रहते है सभी, पर दिल में बैचैनी क्यों लगती है? 

खुशिया मिल भी जाये बहोत, फिर भी आँख में नमी सी क्यों लगती है? 
मंज़िल के काफी करीब जाने पर भी, थोड़ी दुरी सी क्यों लगती है? 

स्वादिष्ट भोजन के बाद हमेशा, पेट बदहज़मी सी क्यों लगती है? 
चुनाव के दौरान राजनीति कोई मौसमी बीमारी सी क्यों लगती है? 

इंतज़ार में आप के कुछ देर से, ये दुनिया थमी-थमी सी क्यों लगती है? 
आपके आने बाद ही ये महेफिल  अब जाके जमी सी क्यों लगती है? 







Sunday, 2 September 2012

जिन्दगी के हर कदम पर




जिन्दगी के हर कदम पर कुछ खोया कुछ पाया हमने,
खुबसूरत हर लम्हें को यादो में सजाया हमने,

वक़्त चलता रहा अपनी ही धून में मस्त हो कर, 
किसी ना किसी मोड़ पर खुदको रुका हुआ पाया हमने,

मिलते रहे कारवाँ और कई बिछड़े हमसे,
भीड़ में भी कँही खुदको तनहा पाया हमने,

गर्दिस-ए-दस्त में ढूँढना मुश्किल नहीं इतना,
चाहकर भी मंजिल को कभी ना पाया हमने,

कुछ फासले से ही दीदार करना मुनासीब  लगा हमें,
उन्हें इशारो से भी ना कभी बुलाया हमने।। 

Saturday, 15 October 2011

कहेते कहेते!

कहेते कहेते लाबोने कुछ ना कहा, 
दिल के जस्बात दिल में ही रहे से गए,

सि नहीं सकते किसी धागे से,
वक़्त के साथ जख्म भी बढ़ते गए,

मंजिल को जो कभी जाती ही नहीं,
हम उसी राह पर ही चलते गए,

चाह कर भी जिन्हें भूला ना सके,
कुछ लम्हे यादोमे ही बसते गए,

जलाना तो शमा की फितरत है,
नादान परवाने फिर भी जलाते गए,

फूल प्यार का तो खिला भी नहीं,
शूल रंजिशो के ही चुभते गए,

Wednesday, 7 September 2011

એવો શું જાદુ કર્યો એમને!

એવો શું જાદુ કર્યો એમને કે ધરતી પર સ્વર્ગ ઉતરી આવ્યું,
ખોવાઈ ગયુ હતુ ઘણા સમય થી એ સ્મિત પાછું આવ્યું,

પહેલા થતી હતી મજાક-મસ્તી તો કોઈ નવાઈ ની વાત નહોતી,
પણ આજે કરી છેડછાડ એમને તો કંઈક અવનવું લાગ્યું,

ઘણા દિવસો થી અબોલા લીધા હતા એમણે અમારી સાથે,
બે બોલ મીઠા બોલ્યા તો જાણે કોઈ ગીત ગાઈ નાખ્યું,

નાં રિસાય ફરી કદી હવે એ બસ એકજ અરમાન છે "શરદ"
 હવે નહિ સહેવાય વેદના, વિરહ માં ઘણું સહી નાખ્યું,
  
 એકલતા ની રાતો માં એક ઉષાકિરણ ની જ આસ હતી,
 ગાઢ નીંદર માં પોઢેલું નસીબ લાગે છે હવે જાગ્યું,

.............................................................એવો શું જાદુ કર્યો 




Friday, 5 August 2011

अच्छी लगती है!

बाते कई है कहेने को फिर भी ख़ामोशी अच्छी लगती  है!
मरासिम तो बढ़ते जाते है फिर भी तन्हाई अच्छी लगती है!

बहोत मिली है खुशियाँ लेकिन आँखों में नमी अच्छी लगती है!
सुकून से दुश्मनी नहीं हमें, बेचैनियों से यारी अच्छी लगती है!

सबसे मिला है प्यार बेशुमार, बेरुखी यार की अच्छी लगती है!
ज़िंदगी तो खुबसूरत है "शरद" पर मौत से मोहब्बत अच्छी लगती है!


Saturday, 26 March 2011

कुछ ज्यादा चाहता हूँ!

अपनी हेसियत से कुछ ज्यादा चाहता हूँ!
खता है मेरी मै तुझे चाहता हूँ!

सहेरा की रेत में है मेरा ठिकाना,
 बाग़ - बहार - घटा चाहता हूँ!

नहीं ओरों सी मेरी किस्मत तो क्या है,
आजमाना एक दाव चाहता  हूँ!

मुमकिन नहीं तुझसे मिलना लेकिन,
तेरे दिल में थोड़ी सी जगह चाहता हूँ!

जमाने में मज़ाक बना कर भी अपना,
बस तेरे लबो पर हँसी चाहता हूँ!