Monday, December 27, 2010

तुझसे एक पल की मुलाकात !




तुझसे एक पल की मुलाकात काफी है उम्र-बसर के लिए,
बाकी तो सारी जिंदगी मुश्किल है तन्हा सफ़र के लिए,

मरते है जिस्म, नहीं मरती है रूहें मगर,
नहीं तो कोई क्यों लाता फूल भी कब्र-ए-पत्थर के लिए,

मिल जाती जो मुसाफिर को आरजू से मंजिल,
ना खोजता  दर-बदर उसको, ना पूछता राह-ए-गुज़र के लिए,

बिना गम-ए-पड़छाई के खुशियों के उजाले कुछ नहीं,
बनते है ख्वाब हकीकत जब होती है रात सहेर के लिए,

आसमाँ भी पीघलने को मजबूर हो जाए,
आब-ए-चश्म भी चाहिए होने को दुआ में असर के लिए,

तुझसे एक पल की मुलाकात काफी है उम्र-बसर के लिए,
बाकी तो सारी जिंदगी मुश्किल है तनहा सफ़र के लिए,

Sunday, December 26, 2010

दिदार

दिदार से तेरे जी भरता नहीं है,
कुछ ओर देखने को जी करता नहीं है,

नज़र आती है सिर्फ सूरत तेरी,
अब आईने से दिल डरता नहीं है,

तेरी आँखों की झील है इतनी गहेरी,
कोई डूब जाए तो उभरता नहीं है,

झुल्फों को बिखर जाने दो अब तो,
के घटाओं से सावन बरसता नहीं है,

तेरे लबों ने सारी रंगत चुरा ली,
कोई गुल बागो में खिलाता नहीं है,

रोशनी से ही तेरी झिलमिलाता है आलम,
परवाना शमा पर अब मरता नहीं है,

तेरी महक से हो कर के पागल,
तूफ़ान  हीं ओर ठहेरता नहीं है,..........

दिदार से तेरे जी भरता नहीं है,
कुछ ओर देखने को जी करता नहीं है,

Friday, December 24, 2010

तारीफ़-ए- माशूक

"दिल ने चाहा आप से कहू अपनी सूरत,
शराफत ने कहा,"तेरी इतनी जुर्रत!"
अब आप ही कहिये, क्या करे, क्या कहे?
इस दिल को तो है सिर्फ आपकी जरुरत!"


"अब्र में छुपा माहताब नज़र आया,
पर्दानशी शबाब नज़र आया,
ख्वाब में भी ना देखा कभी,
चहेरा आपका ला'जवाब नज़र आया!"




"दर्द-ए-शायरी"

"आँखों ने चूका दिया मोती बिखेर कर,
कर्ज था बहोत दर्द का दिल पर!"



"दर्द दिल का ही दवा बन गया वरना,
हकिम लूँट लेते बाकी बचे अरमानो को!"



"अगर कुछ लब्ज़ मिसरी से मिला देते,
हम जहर भी चाय समझ कर पी लेते!"

Tuesday, December 21, 2010

अगर आसपास कँही तुम जो होते!

अगर आसपास कँही तुम जो होते,
किसी पेड़ के निचे हम बैठे होते,

छेड़ जाती मस्त पवन ये जो तुमको,
तुम आके मेरी बाजुओं में लिपटते,

कुछ अरमान दिल में तुम्हारे मचलते,
अधुरे मेरे ख्वाब कुछ पुरे होते,

ओढ़के ओढ़नी धरती दुल्हन बनी है,
चुनर ओढ़के थोड़े तुम शरमाते,

झूमती है फ़सल आज लहेराके ऐसे,
संग पंछियों के प्यार के गीत गाते,

फूल खिले है गुलशन में इतने,
कुछ तेरी झुल्फों में भी हम सजाते,


Sunday, December 19, 2010

"हाल-ए-दिल"

 
बंदिशे बहोत सी है जुबाँ पर, बोलु कैसे?
दिल में छूपा है जो राज़, खोलू कैसे?
बोल दु तो डर है रूठ जाए ना कोई,
अब तक है जो साथ छुट जाए ना कहीं,
कहें  बिना भी तो रहा नहीं जाता है,
दर्द दिल का चहेरे पर नज़र आता है,

आग लगी और उठा जो जरा धुँवा,
किसीने पूछा अरे तुझे क्या हुआ, 
कहे तो दीया "कुछ भी नहीं,"
पर मेरे दिल पर मुझे यकीं नहीं,
बार बार फिर यहीं सवाल आता है,
अबे साले, तु क्यों इतना घबराता है?

जवाब: 
"कल करे सो आज कर, आज करे सो अब,
किस्मत मेरी ख़राब है फिर ना कहेना तब."



Tuesday, December 14, 2010

चले आते है!


तेरे चहेरे से उठता है जो नूर इतना,
शमा को छोडके परवाने चले आते है!

तेरी खुश्बू से महेकता है मौसम ऐसे,
कँही भी हो दीवाने चले आते है!

समझ कर चाँद तुझे अमावस की रातो में,
तेरे दीदार को सितारे चले आते है!

कदम चूमने को तेरे साहिल की रेत पर,
दरियाँ कई किनारे चले आते है!

गुजरे जब तु मैदान-ए-सहेरा से,
मस्त बहारो के नज़ारे चले आते है!

महेफिल में कँही तुमसे मुलाकात भी हो,
हम मौसकी के बहाने चले आते है!